सूरज से गुफ्तगू #42

तुम बार बार जो अपनी चलाते थे
न जाने मुझे कितने हिस्सों में तोड़ जाते थे
अब जो तुम पिघले हो अर्सो के बाद
उम्र भर का हिसाब चुकाना होगा तुम्हे आज
तोड़ने की ख्वाहिश नहीं रखते हम
बस बाटना चाहते है तेरे गम
अब तक तुजे छूने से ही डरती थी
अब तुम मुझे खोने से डरोगे
अब तक सिर्फ तुम्हे दूर से देखती थी
अब तुम मुझे पाने का ख्वाब देखोगे

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