April 2 | पाओला के संत फ्रांसिस | अप्रैल 02

काथलिक कलीसिया 2 अप्रैल को पाओला के संत फ्रांसिस का पर्व मनाकर उन्हें याद करती है। संत ने कम उम्र में एक धार्मिक तपस्वी घर्मसंघ की स्थापना की और कलीसिया में भ्रष्टाचार की अवधि के दौरान शुरुआती मठवासिओं की प्रथाओं को पुनर्जीवित करने की मांग की।

फ्रांसिस का जन्म 1416 के दौरान कैलाब्रिया के दक्षिणी इतालवी क्षेत्र में हुआ था। उनके माता-पिता, जिन्होंने अस्सीसी के संत फ्रांसिस के प्रति गहरी भक्ति बनाए रखी, ने उनके नाम पर अपने बेटे का नाम रखा। बालक के माता-पिता के पास धन दौलत की कमी नहीं थी, लेकिन उन्होंने अपने बेटे को एक समृद्ध आध्यात्मिक विरासत दी, इस उम्मीद के साथ कि वह अपने नाम का अनुकरण करेगा।

गरीबी को पवित्रता के मार्ग के रूप में स्वीकार करने में अपने माता-पिता के नेतृत्व का अनुसरण करते हुए युवा फ्रांसिस ने एक उल्लेखनीय आध्यात्मिक जीवन के लक्षण दिखाए। जब उनके पिता ने उन्हें 13 साल की उम्र में शिक्षित होने के लिए फ्रांसिस्कन फ्रायर्स के एक समूह की देखभाल में रखा, तो फ्रांसिस ने उनके धार्मिक तपस्वी घर्मसंघ के नियम के अनुसार सख्ती से जीने का व्यक्तिगत निर्णय लिया।

तपस्वियों के साथ एक वर्ष के बाद, फ्रांसिस अपने माता-पिता के साथ फिर से रहने लगे जब उन्होंने अस्सीसी, रोम और उस ऐतिहासिक फ्रांसिस्कन गिरजा की तीर्थयात्रा की, जिसे पोर्टिनकुला के नाम से जाना जाता है। जब परिवार अपने गृहनगर पाओला लौटा, तो फ्रांसिस ने – केवल 15 वर्ष की आयु में – अपने माता-पिता से एक मठवासी के रूप में रहने की अनुमति मांगी, शुरुआती मरूभूमि निवासी आचार्य मिस्र के संत अन्तोनी जैसे।

युवा मठवासी एक गुफा में सोता था, और जो कुछ भी वह जंगल में इकट्ठा कर सकता था, उसे खा लेता था, साथ ही कभी-कभार शहर में अपने दोस्तों द्वारा भेजे गए भोजन का भी सेवन करता था। चार वर्षों के भीतर, दो और साथी उनके साथ जुड़ गए थे, और नगरवासियों ने मठवासिओं के लिए तीन अलग-अलग कक्षों के निर्माण में सहायता की, साथ ही एक प्रार्थनालय जहां एक पुरोहित मिस्सा अपर्ण करेगा।

स्थानीय महाधर्माध्यक्ष्य से अनुमोदन के साथ, यह छोटा समूह एक युवा संस्थापक की तपस्या और आदिम जीवन स्थितियों पर जोर देने से समझौता किए बिना, बड़े धार्मिक तपस्वी घर्मसंघ में बढ़ता रहा। उन्हें पहले अस्सीसी के संत फ्रांसिस के ऐकांतवासीयों के रूप में जाना जाता था, लेकिन बाद में उनका नाम बदलकर ‘‘मिनिमी‘‘ (या ‘‘मिनिम्स‘‘) कर दिया गया, जिसका अर्थ है ‘‘सबसे कम‘‘, और जो विनम्रता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता था।

फ्रांसिस और उनके मठवासी न केवल अपनी कठोर जीवन शैली के लिए, बल्कि अपने सख्त आहार के लिए भी उल्लेखनीय थे, जिन्होंने न केवल अपने भोजन से मांस और मछली को निकाल दिया, बल्कि अंडे, डेयरी उत्पादों और जानवरों से प्राप्त अन्य खाद्य पदार्थों को भी सूची से बाहर रखा।

निर्धनता, ब्रहम्चार्य और आज्ञाकारिता की पारंपरिक प्रतिज्ञा के साथ-साथ मांस और अन्य पशु उत्पादों से परहेज उनके धार्मिक तपस्वी घर्मसंघ का ‘‘चैथा व्रत‘‘ बन गया, फ्रांसिस ने चालीसा काल के दौरान उपवास की परंपरा को पुनर्जीवित करने के प्रयास में इस आहार के निरंतर, साल भर पालन की स्थापना की, जिन्हें कई रोमन काथलिकों ने 15 वीं शताब्दी तक अभ्यास करना बंद कर दिया था।

विडंबना यह है कि फ्रांसिस के ईश्वर के साथ एकान्त संवाद की खोज ने कई महत्वपूर्ण हस्तियों का ध्यान उनकी ओर आकर्षित किया, जिनमें कई यूरोपीय राजा तथा संत पिता और धर्माध्यक्ष के साथ अन्य कुलीन वर्ग के लोग भी शामिल थे। इनमें से कुछ लोगों ने फ्रांसिस को भ्रष्ट युग में एक आध्यात्मिक नेता के रूप में माना, जबकि अन्य को भविष्यवाणी और चमत्कारी चंगाई के वरदानों में अधिक दिलचस्पी हो सकती थी। फ्रांसिस ने संत पिता सिक्सटस चतुर्थ के अनुरोध पर अपने साथ अपने भतीजे निकोलस को लेकर फ्रांस की यात्रा की, जिन्हें उन्होंने मृतकों में से जिलाया था। वहाँ, कुख्यात सत्ता के भूखे राजा लुई ग्यारहवें स्वयं मृत्यु की कगार पर थे, और उन्हें उम्मीद थी कि फ्रांसिस एक चमत्कार करेंगे और उनके स्वास्थ्य को बहाल करेंगे।

फ्रांसिस ने राजा से स्पष्ट रूप से कहा कि उन्हें अपने सांसारिक जीवन के अंत से नहीं, बल्कि अनन्त जीवन के नुकसान से डरना चाहिए। उस समय से मठवासी फ्रांसिस राजा का करीबी आध्यात्मिक सलाहकार बन गया। उन्होंने उनके साथ मृत्यु और अनंत काल की वास्तविकता पर चर्चा की, और उनसे बहुत देर होने से पहले अपने दिल और आत्मा को ईश्वर को सौंपने का आग्रह किया।

1483 में फ्रांसिस की बाहों में राजा की मृत्यु हो गई। लुई ग्यारहवें के बेटे और उत्तराधिकारी, चार्ल्स अष्ठम ने मठवासी को आध्यात्मिक और यहां तक कि राजनीतिक मामलों में एक करीबी सलाहकार के रूप में बनाए रखा। बहरहाल, फ्रांसिस ने पाओला के बाहर अपने आश्रम में रहते हुए विकसित किए गए मठवासी नियम का पालन करना जारी रखा। उन्होंने मिनिम ऑर्डर के श्रेष्ठ जनरल की अपनी भूमिका को जारी रखा, और फ्रांस में नए मठों की स्थापना की।

फ्रांसिस ने महसूस किया कि उनकी मृत्यु 91 वर्ष की आयु में करीब आ रही है, तो वे खुद को तैयार करने हेतु तीन महीने पूर्ण एकांत में रहने के लिए लौट आए। जब वे प्रकट हुए, तो उन्होंने मिनिम भाइयों के एक समूह को इकट्ठा किया और उन्हें भविष्य के घर्मसंघ के लिए अंतिम निर्देश दिए। उन्होंने आखिरी बार परम प्रसाद प्राप्त किया और 2 अप्रैल, 1507 के पवित्र शुक्रवार के दिन उनकी मृत्यु हो गई।

संत पिता लियो दसवें ने पाओला के संत फ्रांसिस की मृत्यु के 12 साल बाद, 1519 में उन्हें संत घोषित किया। हालांकि 18 वीं शताब्दी में फ्रांसीसी क्रांति के दौरान, मिनिम तपस्वी घर्मसंघ ने अपने कई मठों को खो दिया परंतु यह मुख्य रूप से इटली में आज भी मौजूद है।

Advertisements

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s